Tuesday, May 20, 2014

काश मैं यह कर पाऊं


जी मैं आता है यहाँ से पंछी बन के उड़ जाऊं 
पंख फैलाये अपने मैं
खुले आसमान में उडती जाऊं 

न हो कोई दीवार, न हो कोई बंधन 
न हो कोई फ़िक्र, न हो कोई उलझन 

जी मैं आता है यहाँ से पंछी बन के उड़ जाऊं 
खुले गगन के तले में 
दूर दूर तक घूम के आऊँ 

न हो कोई भाषा की रोक, न हो कोई रस्मों की टोक 
नीले उस अम्बर के नीचे, बस उडती जाऊं 

जी मैं आता है यहाँ से पंछी बन के उड़ जाऊं 
जहाँ चाहे जी मेरा, वहां पहुँच जाऊं 
जैसे चाहे जी मेरा, वैसा देस बनाऊं


न हो कोई बंदिशें, न हो कोई मुश्किलें 
जब जी चाहे, जो जी चाहे बस वो कर जाऊं 

जी मैं आता है यहाँ से पंछी बन के उड़ जाऊं 
आज़ाद गगन की छाओं में 
अपने पंख फैलाऊं

जब जी चाहे, जो जी चाहे बस वो कर जाऊं 
जी मैं आता है यहाँ से पंछी बन के उड़ जाऊं 

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