झांकती हुई धूप नहीं दिखती
आज मेरे उस बरामदे के बाहर
छाओं का साया है
आज मेरे उस बरामदे के बाहर
कोई शोर नहीं सुनाई देता
आज मेरे उस बरामदे के बाहर
चिड़ियों की चहचाह ही सुनती है
आज मेरे उस बरामदे के बाहर
कोई अनचाही परछाई नहीं आती
आज मेरे उस बरामदे के बाहर
खिलखिलाती मुस्कराहट है
आज शायद उस बरामदे के बाहर
पहले जैसा कुछ नहीं है
लेकिन आज जैसा है
उसमें उदासियों का सबब नहीं है
वक़्त ही जानता है
की हमने कुछ खोया
या हमने पाया है
अपनों को न छलने
न दिल दुखाने की राह में
हमने शायद और वक़्त लगाया है
सही ग़लत की राह में
लेकिन खुद को ही पाया है
आज उस बरामदे के बाहर
बस आज उस बरामदे के बाहर
एक सुकून भरमाया है
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