वो उस शाख़ पर लहलहाती हुई एक पत्ती
वो उस लम्हे मैं क़ैद मेरी ज़िन्दगी
वो उस एक पत्ती पर अटकी हुई मेरी ज़िन्दगी
वो अधूरी दास्तां की मुक़म्मल ज़िन्दगी
वो बिना अस्तित्व के बिखरी हुई ज़िन्दगी
वो नीरसता में रंग भरती हुई पत्ती
वो कुछ न हो के भी वजूद से भरी
वो ज़िन्दगी को एक आस देती हुई कुछ सूखी, कुछ महकी सी पत्ती
वो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी का रुख़ देती हुई
वो उस शाख़ पर अकेली लटकती हुई एक पत्ती
वो उस लम्हे मैं क़ैद मेरी ज़िन्दगी
वो उस एक पत्ती पर अटकी हुई मेरी ज़िन्दगी
वो अधूरी दास्तां की मुक़म्मल ज़िन्दगी
वो बिना अस्तित्व के बिखरी हुई ज़िन्दगी
वो नीरसता में रंग भरती हुई पत्ती
वो कुछ न हो के भी वजूद से भरी
वो ज़िन्दगी को एक आस देती हुई कुछ सूखी, कुछ महकी सी पत्ती
वो ज़िन्दगी को ज़िन्दगी का रुख़ देती हुई
वो उस शाख़ पर अकेली लटकती हुई एक पत्ती
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